Sunday, December 1, 2013

प्रार्थना (Prarthana)



प्रार्थना

नित्यपठन:

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ |
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ||

या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वरदंड मंडीतकरा, या श्वेत पद्मासना |
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभूतिभिर्देव्यै सदा वन्दीता
सा मां पातु सरस्वती भगवती, नि:शेष ज्याडयापहा ||

गुरूर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: |
गुरु साक्षातपरब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नमः ||

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देवं ||

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्र्यम्ब्यके गौरि, नारायणि नमोस्तुते ||

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं |
देवकी पर्मानंदम कृष्णं वंदे जगतगुरु ||

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम |
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्घ्यानगम्यं
वंदे विष्णु भवभय हरं सर्वलोकैकनाथं ||

कैलासराणा शिवचंद्रमौळी, फणीन्द्रमाथा मुकुटी झळ ळ |
कारुण्यसिंधु भव दुःख हारि, तुज विण शम्भो मज कोण तारी ||

सकाळी उठल्या बरोबर:

कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तु गोविन्दम, प्रभाते करदर्शनम्

समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडले ।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे ॥

आंघोल करताना:

गंगेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वती |
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधि कुरु ||

जेवणापुर्वी:

वदनी कवळ घेता नाम घ्या श्रीहरीचे| सहज हवन होते नाम घेता फुकाचे ||
जीवन करी जिवित्वा अन्न हे पूर्ण ब्रह्म | उदरभरण नोहे जाणिजे यज्ञकर्म ||

सायंकालिन:

शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यं धन सम्पदा
शत्रुबुध्हि विनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते

झोपणयापूर्वी:

ईश्वर रक्षा करो हमारी, हम सब हैं प्रभु शरण तुम्हारी
दिन भर के अपराध हमारे, क्षमा करो करुणानिधि सारे

चन्दन है इस देश की माटी (Chandan hai iss Desh ki maati)



चन्दन है इस देश की माटी

चंदन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है |
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ||
हर शरिर मंदिर सा पावन ,
हर मानव उपकारी है,
जहां सिहं बन गये खिलौने,
गाय जहा माँ प्यारी है |
जहाँ सबेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है ||१||

जहाँ कर्म से भाग्य बदलते
श्रमनिष्ठा कल्याणी है,
त्याग और तप की गाथाए,
गाती कवी की वाणी है
ज्ञान जहाँका गंगाजल सा, निर्मल है अविराम है ||२||

जिसके सैनिक समरभूमि में
गाया करते गीता हैं
जहाँ खेत में हल के निचे
खेला करती सीता है |
जीवन का आदर्श जहाँ पर, परमेश्वर का धाम है ||३||

खरा तो एकची धर्म (Khara to Eakachi Dharma)



खरा तो एकची धर्म

खरा तो एकची धर्म, जगाला प्रेम अर्पावे || धृ ||

जगी जे हीन अतिपतित,
जगी जे दीन पददलित
तया जाऊनी उठवावे, जगाला प्रेम अर्पावे ||१||

सदा जे आर्त अतिविकल,
जयांना गांजती सकल,
तया जाऊनी हसवावे, जगाला प्रेम अर्पावे ||२||

कुणा ना व्यर्थ हिणवावे,
कुणा ना व्यर्थ शिणवावे
समस्ता बंधु मानावे, जगाला प्रेम अर्पावे ||३||

प्रभुची लेकरे सारी ,
तयाला सर्वही प्यारी,
कुणा ना तुच्छ लेखावे , जगाला प्रेम अर्पावे ||४||

असे हे सार धर्माचे,
असे हे सार सत्याचे,
परार्था प्राण ही द्यावे, जगाला प्रेम अर्पावे ||५||